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- Dec 12, 2024
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ही फ्रेंड्स, कैसे है आप सब? काफ़ी दीनो से लाइफ बड़ी बोरिंग और घिसी-पिटी चल रही थी, इसलिए मेरी स्टोरीस आपके साथ शेर नही कर पाई. अब समय मिला है, एक घटना आपके साथ शेर करने का.
मैं निशा, 36 यियर्ज़ ओल्ड हाउसवाइफ हू, मैं अपने सास-ससुर, हज़्बेंड (शेखर 43 यियर्ज़ ओल्ड, कन्स्ट्रक्षन बिज़्नेस) और बेटा (10 यियर्ज़ ओल्ड) के साथ यहाँ नासिक में रहती हू.
मैं पिछले साल तक, एक संसकारी और पतिव्रता महिला होने का ढोंग कर रही थी, पर जब कुछ महीनो पहले मेरे हज़्बेंड के बिज़्नेस की वजह से मुझपे और मेरे ससुरजी पे लीगल मुक़दमा हुआ और ह्यूम कुछ दीनो के लिए हमारे एक फॅमिली फ्रेंड जे अंकल के घर छुपकर रुकना पड़ा, तब मेरा सारा ढोंग टूट गया और मैने अपने ससुरजी और जे अंकल के साथ खूब रंग रलिया मनाई.
ये कहानी आप चाहे तो ‘अंकल ने उठाया मेरे गांद का मज़ा’ सीरीस में पद सकते हो.
मेरी हाइट 5’3″ है और मेरा फिगर 36-34-42 है. क्यूकी मैं अपने सास-ससुर के साथ रहती हू, मैं हमेशा सारी पहनती हू. सारी और पीछे से डीप-कट ब्लाउस पहनना मुझे काफ़ी पसंद है.
मेरी खराब आदत ये है की, मैं जब चलती हू, तो अपना पैर घसीट कर चलती हू, इससे मेरी गांद उपर नीचे उछालने के बजाय अगाल-बगल में लहराती है.
मेरी इश्स चल ने हमारे खंडन और एरिया के काफ़ी सारे मर्डून की नींद हराम कर रखी है, मेरी गांद को देख कर काफ़ी लोगों में यौन इक्चा जाग जाती है, या फिर आसान बाशा में काहु तो उनका लंड खड़ा हो जाता है.
मेरे बूब्स अब भी इतने रसीले और अटल है, की जब भी किसी मर्द से बातें करती हू वो बुद्धा हो या जवान, कम से कम एक बार उसकी नज़र मेरे क्लीवेज और बूब्स की तराफ़ जाती ज़रूर है.
वो कहते है ना ‘घर की मुर्गी दल बराबर’ मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही है. मेरे पति को सिर्फ़ मेरी छूट छोड़ने में मज़ा आता है, मैने आज तक कभी उनका लंड नही चूसा, या फिर उन्होने कभी मेरी छूट नही छाती, उन्हे इन सब चीज़ो से घृणा आती है.
लेकिन एक बात हो गयी, जबसे मैं जे अंकल के घर रहने गयी, मैने इन सब चीज़ो का मज़ा उत्ता लिया और जैसे ‘शेर के मूह को खून लग गया’ वैसे अब मुझे इन्न सब चीज़ो की हवस होती रहती है.
शेखर, मेरे हज़्बेंड क़ानूनी भाग-दौड़ और बिज़्नेस डील्स में इतना उलझे रहते है, की हम दोनो का शारीरिक संबंद तो दूर की बात है, हमारी बात-चीत भी बोहट कम ही होती है.
मेरी छूट की खुजली मिटाने के लिए मुझे अपनी उंगली का सहारा लेना पद रहा है.
कुछ महीनो पहले मैने अपने भनजे के साथ एक खेल रचाया और अपनी खुजली कुछ हाढ़ तक मिटा ली, वो आप चाहे तो ‘मामी आंड भांजा’स सीक्रेट अफेर सीरीस’ में पद सकते हो.
तो ये हुआ कुछ महीनो पहले दीवाली के एक हफ्ते बाद. मेरे नाम पे जो कन्स्ट्रक्षन कंपनी है, उसका एक प्रॉजेक्ट जो ह्यूम रढ करना पड़ा क्यूकी हमारा कॉंट्रॅक्टर पैसे लेकर भाग गया था.
उस प्रॉजेक्ट का एक इन्वेस्टर जो मुंबई में रहता है, उसने हमारी कंपनी पर केस कर दिया मुंबई के एक मलाड कोर्ट में.
तो जब कोर्ट से समन्स आया, तो हमारे वकील ने कहा की मुझे हाज़िर होना पड़ेगा कोर्ट में.
कोर्ट कचेरी का नाम सुनकर ही हालत खराब हो जाती है, यह तो मुझे कोर्ट में हाज़िर होना था. मैं काफ़ी दर्र गयी थी.
हमारे वकील ने मुझे दिलासा दिया की सिर्फ़ जाकर अगले तारिक़ की माँग करनी है, कोई ज़्यादा परेशानी वाली बात नही है.
तो डिसाइड होगआया मैं, शेखर और वकील जाकर आएगे.
मैने जाने की टायारी शुरू कर दी. जाने के चार दिन पहले मेरे हज़्बेंड ने बताया की एक बोहट बड़े कन्स्ट्रक्षन ग्रूप के साथ उनकी मीटिंग फिक्स हुई है, और अगर ये मीटिंग सक्सेस्फुल हो जाती है, तो उनके कंपनी को कभी काम की कोई कमी नही होगी.
शेखर का मुंबई आना मुश्किल लग रहा था, तो उन्होने ही सजेस्ट किया, की मैं और मेरा बेटा दोनो वकील के साथ निकल जाए और प्रभा मासी (मुंबई में रहने वाली हमारी मासी) के घर रुख़ जाए. मेरे बेटे की दीवाली वाकेशन चल रही थी तो वो एक अछा विकल्प लग रहा था उनको.
इसके अलावा कोई तरीका ना होने की वजह से मैने भी शेखर की हन में हन मिला दी.
शेखर ने हम तीनो के लिए वनडे-भारत में सीट्स बुक की और वकील के लिए एक आचे होटेल में रूम भी बुक किया, शाम 7 बजे नासिक तो मुंबई की ट्रेन थी.
प्लान था की मुंबई उतारकर कॅब करेंगे, हम दोनो को प्रभा मासी के घर ड्रॉप करके वकील अपने होटेल निकल जाएगा और दूसरे दिन सुबह मुझे प्रभा मासी के घर से पिक करके, हम दोनो कोर्ट चले जाएँगे.
हमारे वकील का नाम रंजीत है और वो भी नासिक में ही रहते है. रंजीत, शेखर और उनकी फॅमिली की तरह अल्लहबाद से बिलॉंग करते है. इसलिए वो जब घर आते है तो हमारा पूरा परिवार उन्हे एक फॅमिली मेंबर की तरह ही ट्रीट करता है.
शेखर ने हम दोनो मा-बेटे को स्टेशन पर छोड़ा, क्यूकी स्टेशन के आस-पास पार्किंग नही थी, और मैने शेखर को रुखने से माना कर दिया.
मैं और मोनू जब प्लॅटफॉर्म पर पोहचे, रंजीत हमारा इंतेज़ार कर रहा था.
मैने हमेशा रंजीत को अपने वकील वेल यूनिफॉर्म में ही देखा है, लेकिन आज वो एक टाइट त-शर्ट और जीन्स पहनकर आया था, बोहट हॅंडसम लग रहा था.
मुझे देखते ही रंजीत उत्कर खड़ा हुआ और मुझे सिर से लेकर पैर तक घूर्ने लगा. मैने एक ब्लॅक शिफ्फॉन सारी वित गोलडेन स्पॉट्स और टाइट ब्लॅक ब्लाउस पहनी थी, जो मेरे फिगर पर चार चाँद लगा रही थी.
रंजीत: “नमस्ते भाभी, शेखर भाई नही आए स्टेशन तक?”
मैं: “नही भैया, वो स्टेशन पर पार्किंग नही मिली, तो मैने उन्हे अंदर से माना कर दिया.”
मैं: “कितने बजे आएगी गाड़ी?”
रंजीत: “टाइम तो 7.30पीयेम का है, अब देखते है.”
ये सब बात चीत के दौरान, रंजीत की नज़ारे मेरे बूब्स पर थी, और ये कोई पहली बार नही है. वो जब भी मुझसे बातें करतें है, वो बेफ़िक्र होकर मेरे क्लीवेज और बूब्स को घूरते रहते है.
वो कुछ लोग होते है ना, एकद्ूम तर्की किस्म के, ये भैसाब उनमे से एक है.
पर मैं कुछ नही कहती उन्हे, नाही उनसे मूह टेडा करके बात करती हूँ, मुझे कोई आपत्ति नही है अगर कोई मेरे गोल मटोल बूब्स को या मेरी गुबारे जैसी गांद को घुरे.
मेरी फ्रेंड रुक्सर इश्स बात पे मेरा मज़ाक उड़ती है की मैं एक एग्ज़िबिशनिस्ट बिहेवियर (प्रदर्शन-वादी व्यवहार) वाली औरत हूँ.
देखते ही डेक्ते गाड़ी आ गयी. हम तीनो की सीट्स साथ मे थी. ट्रेन बिल्कुल खाली थी आधे से ज़्यादा सीट्स पर कोई नही था.
मोनू ने ज़िद्द करके विंडो सीट लेली, और गलियारे की सीट (आइल सीट) रंजीत ने ले ली, और मैं फस गयी बीच में.
ट्रेन चलने लगी. मोनू विंडो के बाहर नज़ारे देख कर अपना कुरकुरे खा रहा था, मैं और रंजीत घुपशुप में लग गये.
मैं: “तो घर में भाभी और मुन्नी कैसे है?”
रंजीत: ”दोनो ठीक है. आपको पता है ना, मेरी वाइफ प्रेग्नेंट है? उसका सातवा महीना चल रहा है.”
मैं: ”अरे हन, मैने सुना था अंमाजी के मूह से, मेरे ध्यान से निकल गया. कैसी है वो?”
रंजीत: “बिल्कुल ठीक है, उसकी दीदी आई है रुखने वो मदद कर देती है, बस मेरी हालत खराब है.”
मैं: ”क्यू? तुम्हारी क्यू हालत खराब है?”
रंजीत: “मेरी खेत में फसल लगी है, मेरा हाल ज्ोटना बंद है.” (उसकी बीवी प्रेगनाट है, उसकी चुदाई बाँध है)
उसकी यह बात सुनकर, ना चाहते हुए भी मेरी हसी छूट गयी. मैं ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी, हम दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगे.
अब हमारी बातें एकद्ूम खुल चुकी थी, हम दोनो बोहट ज़्यादा हसी मज़ाक करने लगे थे.
रंजीत दिखने मे तोड़ा कला था पर उसकी हाइट बॉडी पर्सनॅलिटी सब एकद्ूम जबरदस्त थी. उसके बाल एकद्ूम सिल्की और घने थे.
मैं: ”आप हमेशा क्लीन शेव क्यू करते हो?”
रंजीत: “कोर्ट में जड्ज पर अछा इंप्रेशन पड़ता है, क्लीन शेव, नीट आंड क्लीन कपड़े सब माइने रक्ते है कोर्ट में.”
मैं: “भैया, आपकी उमर क्या होगी?”
रंजीत: “मैं इश्स गये ऑगस्ट में 35 का हो गया हू.”
मैं: “मैं 36 की हू.”
रंजीत: “अछा? मतलब मैं आपसे उमर में छोटा हू…”
मैं: “बिल्कुल, मैं तो आपको जेठ समाज रही थी, आप तो मेरे ड्यूवर निकले…”
रंजीत: “अगर ऐसी बात है, तो इश्स बार होली में आपको रंग लगाने ज़रूर अवँगा.”
यह कहकर उसने मुझे एक नॉटी स्माइल दी, और आँख मरके हासणे लगा, मैं भी हासणे लगी.
हम दोनो की खूब बन रही थी, हम दोनो सच में एक असली भाभी-ड्यूवर की तरह हस्सी मज़ाक कर रहे थे.
इश्स सब के दौरान उसने कही बार अंजान बनकर मेरा हाथ टच किया, अपनी कोनी मेरे कमर पर घिसी और बोहट सी ऐसी छोटी छोटी हरकते की, जो एक असली तर्की करता है
कुछ देर बाद मोनू को टाय्लेट जाना था. मैं अपने सीट पर से उत्ती, पर रंजीत नही उत्ता. उसने अपने सीट को और अपने बॉडी को तोड़ा पीछे ले लिया, ताकि मैं उसके सामने से निकल साकु.
मैं उसके सामने से जगह बना कर सीट से बाहर निकालने लगी, इतटने में ट्रेन ने ज़ोरदार झटका मारा और मैं उसके गोध में गिरने लगी. पर उसने अपने दोनो हाथो से मेरी गांद को रोखा और मुझे उसकी गोध में गिरने से बचा लिया.
अब मैने अपने आप को संभाल लिया था, पर रंजीत ने अपना हाथ मेरी गांद पर से नही हटाया था. मैं सीट के बाहर निकली. मेरे पीछे मोनू निकला.
मैं जानती हू मुझे रंजीत के इश्स करतूत पे घुस्सा होना चाहिए था, पर मेरी छूट इतने दीनो से बंजर पड़ी थी, की उसकी इश्स हरकत ने मेरी छूट में एक हल्की खुजली पैदा कर दी थी, और इश्स वजह से मैने मड कर रंजीत को एक नॉटी स्माइल दिया और मोनू को लेकर टाय्लेट की र चल पड़ी.
अब मेरा मॅन चंचल हो चक्का था, मेरी छूट की खुजली बर्दाश्त के बाहर जा रही थी. जैसे ही मोनू टाय्लेट से निकला, मैने उससे सीट तक पोहछाया और खुद टाय्लेट में घुस गयी.
टाय्लेट में मैने अपनी सारी और पेटीकोआट को उपर उताया, चड्डी नीचे घसिटी और पागलो जैसे अपनी छूट सहलाने लगी.
मैने कभी मेरी ज़िंदगी में नही सोचा था, की ट्रेन मे ये हरकत करूँगी. मैं लेफ्ट हाथ से अपने सारी को उपर पकड़कर, अपनी पीट दरवार्ज़े पर टेक कर अपने रिघ्त हाथ से अपनी छूट की खुजली मिटाने की कोशिश कर रही थी.
लगभग 5मीं बाद मैं झाड़ गयी, मैने अपनी सारी ठीक की, हाथ धोया और दरवाज़ा खोला.
दरवाज़ा खोलते ही मैं चौंक गयी, रंजीत बाहर एक स्माइल के साथ खड़ा था.
रंजीिट: “क्या हुआ भाभी? अंदर इतनी देर क्यू लगा दी? तबीयत ठीक है ना आपकी?”
मैं: “नही नही, कुछ नही… ऐसे ही कुछ ख़यालो में खो गयी…”
यह कहकर मैं हासणे लगी और रंजीत मुझे एक नॉटी स्माइल के साथ घूर्ने लगा.
रंजीत अपने सीट की ऊवार चलने लगा और उसके पीछे मैं. वो पहले ही जाकर अपनी सीट पर बैट गया.
मैं: “भैया, आप मुझे पहले अंदर जाने देते आप बाड़मे बैट जाते.”
रंजीत: ”अरेययय!! सही कहा आपने… चलिए, कोई बात नही, बोहट जगह है आराम से आ जाइए.”
यह कहकर वो अपनी सीट पीछे लेने लगा और मुझे अंदर आने का इशारा किया.
मैं हल्की स्माइल के साथ अंदर घुसने लगी अपनी पीट उसकी तरफ करके, तभी यूयेसेस शातिर ने “संभाल कर आइए” कहकर मेरी गांद को अपने दोनो हाथो से सहारा देने लगा.
उसने तब तक हाथ नही हटाया जब तक मैं बैटी नही. पर अब मैं छोड़ने नही वाली थी.
मैं: “आपके खेत में फसल लगी है, इसका मतलब यह नही की आप लोगो के खेत मे आवारगार्दी करोगे.” (आपकी पत्नी प्रेग्नेंट है, इसका मतलब यह नही की आप लोगो की पत्नियो पर चान्स मरोगे)
यह कहकर मैने एक स्माइल डेडी, ताकि वो शर्मिंदा ना महसूस करे. तो वो भी एक स्माइल के साथ अपने तर्की स्वर में बोलने लगा.
रंजीत: “अरे आप तो मेरी भाभी हो, और मैं आपका छोटा ड्यूवर… आपका खेत भी तो मेरा खेत है.”
मैं फिर कामुक होती जा रही थी, पर मैने मॅन बना लिया था के इस्पे फुल-स्टॉप लगाना ही होगा. इसलिए मैने ज़बरदस्ती उसका हाथ हटाया और दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गयी.
मैं: “बड़े डीट आदमी हो यार. चलो अब सीट पे, बाकी सब बाड़मे.”
रंजीत: “डीट नही हू, पागल हू आपके प्यार में. आप जाइए, मैं ज़रा हाथ-गाड़ी (मास्टरबेशन) चलकर आता हू.”
मैं निशा, 36 यियर्ज़ ओल्ड हाउसवाइफ हू, मैं अपने सास-ससुर, हज़्बेंड (शेखर 43 यियर्ज़ ओल्ड, कन्स्ट्रक्षन बिज़्नेस) और बेटा (10 यियर्ज़ ओल्ड) के साथ यहाँ नासिक में रहती हू.
मैं पिछले साल तक, एक संसकारी और पतिव्रता महिला होने का ढोंग कर रही थी, पर जब कुछ महीनो पहले मेरे हज़्बेंड के बिज़्नेस की वजह से मुझपे और मेरे ससुरजी पे लीगल मुक़दमा हुआ और ह्यूम कुछ दीनो के लिए हमारे एक फॅमिली फ्रेंड जे अंकल के घर छुपकर रुकना पड़ा, तब मेरा सारा ढोंग टूट गया और मैने अपने ससुरजी और जे अंकल के साथ खूब रंग रलिया मनाई.
ये कहानी आप चाहे तो ‘अंकल ने उठाया मेरे गांद का मज़ा’ सीरीस में पद सकते हो.
मेरी हाइट 5’3″ है और मेरा फिगर 36-34-42 है. क्यूकी मैं अपने सास-ससुर के साथ रहती हू, मैं हमेशा सारी पहनती हू. सारी और पीछे से डीप-कट ब्लाउस पहनना मुझे काफ़ी पसंद है.
मेरी खराब आदत ये है की, मैं जब चलती हू, तो अपना पैर घसीट कर चलती हू, इससे मेरी गांद उपर नीचे उछालने के बजाय अगाल-बगल में लहराती है.
मेरी इश्स चल ने हमारे खंडन और एरिया के काफ़ी सारे मर्डून की नींद हराम कर रखी है, मेरी गांद को देख कर काफ़ी लोगों में यौन इक्चा जाग जाती है, या फिर आसान बाशा में काहु तो उनका लंड खड़ा हो जाता है.
मेरे बूब्स अब भी इतने रसीले और अटल है, की जब भी किसी मर्द से बातें करती हू वो बुद्धा हो या जवान, कम से कम एक बार उसकी नज़र मेरे क्लीवेज और बूब्स की तराफ़ जाती ज़रूर है.
वो कहते है ना ‘घर की मुर्गी दल बराबर’ मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही है. मेरे पति को सिर्फ़ मेरी छूट छोड़ने में मज़ा आता है, मैने आज तक कभी उनका लंड नही चूसा, या फिर उन्होने कभी मेरी छूट नही छाती, उन्हे इन सब चीज़ो से घृणा आती है.
लेकिन एक बात हो गयी, जबसे मैं जे अंकल के घर रहने गयी, मैने इन सब चीज़ो का मज़ा उत्ता लिया और जैसे ‘शेर के मूह को खून लग गया’ वैसे अब मुझे इन्न सब चीज़ो की हवस होती रहती है.
शेखर, मेरे हज़्बेंड क़ानूनी भाग-दौड़ और बिज़्नेस डील्स में इतना उलझे रहते है, की हम दोनो का शारीरिक संबंद तो दूर की बात है, हमारी बात-चीत भी बोहट कम ही होती है.
मेरी छूट की खुजली मिटाने के लिए मुझे अपनी उंगली का सहारा लेना पद रहा है.
कुछ महीनो पहले मैने अपने भनजे के साथ एक खेल रचाया और अपनी खुजली कुछ हाढ़ तक मिटा ली, वो आप चाहे तो ‘मामी आंड भांजा’स सीक्रेट अफेर सीरीस’ में पद सकते हो.
तो ये हुआ कुछ महीनो पहले दीवाली के एक हफ्ते बाद. मेरे नाम पे जो कन्स्ट्रक्षन कंपनी है, उसका एक प्रॉजेक्ट जो ह्यूम रढ करना पड़ा क्यूकी हमारा कॉंट्रॅक्टर पैसे लेकर भाग गया था.
उस प्रॉजेक्ट का एक इन्वेस्टर जो मुंबई में रहता है, उसने हमारी कंपनी पर केस कर दिया मुंबई के एक मलाड कोर्ट में.
तो जब कोर्ट से समन्स आया, तो हमारे वकील ने कहा की मुझे हाज़िर होना पड़ेगा कोर्ट में.
कोर्ट कचेरी का नाम सुनकर ही हालत खराब हो जाती है, यह तो मुझे कोर्ट में हाज़िर होना था. मैं काफ़ी दर्र गयी थी.
हमारे वकील ने मुझे दिलासा दिया की सिर्फ़ जाकर अगले तारिक़ की माँग करनी है, कोई ज़्यादा परेशानी वाली बात नही है.
तो डिसाइड होगआया मैं, शेखर और वकील जाकर आएगे.
मैने जाने की टायारी शुरू कर दी. जाने के चार दिन पहले मेरे हज़्बेंड ने बताया की एक बोहट बड़े कन्स्ट्रक्षन ग्रूप के साथ उनकी मीटिंग फिक्स हुई है, और अगर ये मीटिंग सक्सेस्फुल हो जाती है, तो उनके कंपनी को कभी काम की कोई कमी नही होगी.
शेखर का मुंबई आना मुश्किल लग रहा था, तो उन्होने ही सजेस्ट किया, की मैं और मेरा बेटा दोनो वकील के साथ निकल जाए और प्रभा मासी (मुंबई में रहने वाली हमारी मासी) के घर रुख़ जाए. मेरे बेटे की दीवाली वाकेशन चल रही थी तो वो एक अछा विकल्प लग रहा था उनको.
इसके अलावा कोई तरीका ना होने की वजह से मैने भी शेखर की हन में हन मिला दी.
शेखर ने हम तीनो के लिए वनडे-भारत में सीट्स बुक की और वकील के लिए एक आचे होटेल में रूम भी बुक किया, शाम 7 बजे नासिक तो मुंबई की ट्रेन थी.
प्लान था की मुंबई उतारकर कॅब करेंगे, हम दोनो को प्रभा मासी के घर ड्रॉप करके वकील अपने होटेल निकल जाएगा और दूसरे दिन सुबह मुझे प्रभा मासी के घर से पिक करके, हम दोनो कोर्ट चले जाएँगे.
हमारे वकील का नाम रंजीत है और वो भी नासिक में ही रहते है. रंजीत, शेखर और उनकी फॅमिली की तरह अल्लहबाद से बिलॉंग करते है. इसलिए वो जब घर आते है तो हमारा पूरा परिवार उन्हे एक फॅमिली मेंबर की तरह ही ट्रीट करता है.
शेखर ने हम दोनो मा-बेटे को स्टेशन पर छोड़ा, क्यूकी स्टेशन के आस-पास पार्किंग नही थी, और मैने शेखर को रुखने से माना कर दिया.
मैं और मोनू जब प्लॅटफॉर्म पर पोहचे, रंजीत हमारा इंतेज़ार कर रहा था.
मैने हमेशा रंजीत को अपने वकील वेल यूनिफॉर्म में ही देखा है, लेकिन आज वो एक टाइट त-शर्ट और जीन्स पहनकर आया था, बोहट हॅंडसम लग रहा था.
मुझे देखते ही रंजीत उत्कर खड़ा हुआ और मुझे सिर से लेकर पैर तक घूर्ने लगा. मैने एक ब्लॅक शिफ्फॉन सारी वित गोलडेन स्पॉट्स और टाइट ब्लॅक ब्लाउस पहनी थी, जो मेरे फिगर पर चार चाँद लगा रही थी.
रंजीत: “नमस्ते भाभी, शेखर भाई नही आए स्टेशन तक?”
मैं: “नही भैया, वो स्टेशन पर पार्किंग नही मिली, तो मैने उन्हे अंदर से माना कर दिया.”
मैं: “कितने बजे आएगी गाड़ी?”
रंजीत: “टाइम तो 7.30पीयेम का है, अब देखते है.”
ये सब बात चीत के दौरान, रंजीत की नज़ारे मेरे बूब्स पर थी, और ये कोई पहली बार नही है. वो जब भी मुझसे बातें करतें है, वो बेफ़िक्र होकर मेरे क्लीवेज और बूब्स को घूरते रहते है.
वो कुछ लोग होते है ना, एकद्ूम तर्की किस्म के, ये भैसाब उनमे से एक है.
पर मैं कुछ नही कहती उन्हे, नाही उनसे मूह टेडा करके बात करती हूँ, मुझे कोई आपत्ति नही है अगर कोई मेरे गोल मटोल बूब्स को या मेरी गुबारे जैसी गांद को घुरे.
मेरी फ्रेंड रुक्सर इश्स बात पे मेरा मज़ाक उड़ती है की मैं एक एग्ज़िबिशनिस्ट बिहेवियर (प्रदर्शन-वादी व्यवहार) वाली औरत हूँ.
देखते ही डेक्ते गाड़ी आ गयी. हम तीनो की सीट्स साथ मे थी. ट्रेन बिल्कुल खाली थी आधे से ज़्यादा सीट्स पर कोई नही था.
मोनू ने ज़िद्द करके विंडो सीट लेली, और गलियारे की सीट (आइल सीट) रंजीत ने ले ली, और मैं फस गयी बीच में.
ट्रेन चलने लगी. मोनू विंडो के बाहर नज़ारे देख कर अपना कुरकुरे खा रहा था, मैं और रंजीत घुपशुप में लग गये.
मैं: “तो घर में भाभी और मुन्नी कैसे है?”
रंजीत: ”दोनो ठीक है. आपको पता है ना, मेरी वाइफ प्रेग्नेंट है? उसका सातवा महीना चल रहा है.”
मैं: ”अरे हन, मैने सुना था अंमाजी के मूह से, मेरे ध्यान से निकल गया. कैसी है वो?”
रंजीत: “बिल्कुल ठीक है, उसकी दीदी आई है रुखने वो मदद कर देती है, बस मेरी हालत खराब है.”
मैं: ”क्यू? तुम्हारी क्यू हालत खराब है?”
रंजीत: “मेरी खेत में फसल लगी है, मेरा हाल ज्ोटना बंद है.” (उसकी बीवी प्रेगनाट है, उसकी चुदाई बाँध है)
उसकी यह बात सुनकर, ना चाहते हुए भी मेरी हसी छूट गयी. मैं ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी, हम दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगे.
अब हमारी बातें एकद्ूम खुल चुकी थी, हम दोनो बोहट ज़्यादा हसी मज़ाक करने लगे थे.
रंजीत दिखने मे तोड़ा कला था पर उसकी हाइट बॉडी पर्सनॅलिटी सब एकद्ूम जबरदस्त थी. उसके बाल एकद्ूम सिल्की और घने थे.
मैं: ”आप हमेशा क्लीन शेव क्यू करते हो?”
रंजीत: “कोर्ट में जड्ज पर अछा इंप्रेशन पड़ता है, क्लीन शेव, नीट आंड क्लीन कपड़े सब माइने रक्ते है कोर्ट में.”
मैं: “भैया, आपकी उमर क्या होगी?”
रंजीत: “मैं इश्स गये ऑगस्ट में 35 का हो गया हू.”
मैं: “मैं 36 की हू.”
रंजीत: “अछा? मतलब मैं आपसे उमर में छोटा हू…”
मैं: “बिल्कुल, मैं तो आपको जेठ समाज रही थी, आप तो मेरे ड्यूवर निकले…”
रंजीत: “अगर ऐसी बात है, तो इश्स बार होली में आपको रंग लगाने ज़रूर अवँगा.”
यह कहकर उसने मुझे एक नॉटी स्माइल दी, और आँख मरके हासणे लगा, मैं भी हासणे लगी.
हम दोनो की खूब बन रही थी, हम दोनो सच में एक असली भाभी-ड्यूवर की तरह हस्सी मज़ाक कर रहे थे.
इश्स सब के दौरान उसने कही बार अंजान बनकर मेरा हाथ टच किया, अपनी कोनी मेरे कमर पर घिसी और बोहट सी ऐसी छोटी छोटी हरकते की, जो एक असली तर्की करता है
कुछ देर बाद मोनू को टाय्लेट जाना था. मैं अपने सीट पर से उत्ती, पर रंजीत नही उत्ता. उसने अपने सीट को और अपने बॉडी को तोड़ा पीछे ले लिया, ताकि मैं उसके सामने से निकल साकु.
मैं उसके सामने से जगह बना कर सीट से बाहर निकालने लगी, इतटने में ट्रेन ने ज़ोरदार झटका मारा और मैं उसके गोध में गिरने लगी. पर उसने अपने दोनो हाथो से मेरी गांद को रोखा और मुझे उसकी गोध में गिरने से बचा लिया.
अब मैने अपने आप को संभाल लिया था, पर रंजीत ने अपना हाथ मेरी गांद पर से नही हटाया था. मैं सीट के बाहर निकली. मेरे पीछे मोनू निकला.
मैं जानती हू मुझे रंजीत के इश्स करतूत पे घुस्सा होना चाहिए था, पर मेरी छूट इतने दीनो से बंजर पड़ी थी, की उसकी इश्स हरकत ने मेरी छूट में एक हल्की खुजली पैदा कर दी थी, और इश्स वजह से मैने मड कर रंजीत को एक नॉटी स्माइल दिया और मोनू को लेकर टाय्लेट की र चल पड़ी.
अब मेरा मॅन चंचल हो चक्का था, मेरी छूट की खुजली बर्दाश्त के बाहर जा रही थी. जैसे ही मोनू टाय्लेट से निकला, मैने उससे सीट तक पोहछाया और खुद टाय्लेट में घुस गयी.
टाय्लेट में मैने अपनी सारी और पेटीकोआट को उपर उताया, चड्डी नीचे घसिटी और पागलो जैसे अपनी छूट सहलाने लगी.
मैने कभी मेरी ज़िंदगी में नही सोचा था, की ट्रेन मे ये हरकत करूँगी. मैं लेफ्ट हाथ से अपने सारी को उपर पकड़कर, अपनी पीट दरवार्ज़े पर टेक कर अपने रिघ्त हाथ से अपनी छूट की खुजली मिटाने की कोशिश कर रही थी.
लगभग 5मीं बाद मैं झाड़ गयी, मैने अपनी सारी ठीक की, हाथ धोया और दरवाज़ा खोला.
दरवाज़ा खोलते ही मैं चौंक गयी, रंजीत बाहर एक स्माइल के साथ खड़ा था.
रंजीिट: “क्या हुआ भाभी? अंदर इतनी देर क्यू लगा दी? तबीयत ठीक है ना आपकी?”
मैं: “नही नही, कुछ नही… ऐसे ही कुछ ख़यालो में खो गयी…”
यह कहकर मैं हासणे लगी और रंजीत मुझे एक नॉटी स्माइल के साथ घूर्ने लगा.
रंजीत अपने सीट की ऊवार चलने लगा और उसके पीछे मैं. वो पहले ही जाकर अपनी सीट पर बैट गया.
मैं: “भैया, आप मुझे पहले अंदर जाने देते आप बाड़मे बैट जाते.”
रंजीत: ”अरेययय!! सही कहा आपने… चलिए, कोई बात नही, बोहट जगह है आराम से आ जाइए.”
यह कहकर वो अपनी सीट पीछे लेने लगा और मुझे अंदर आने का इशारा किया.
मैं हल्की स्माइल के साथ अंदर घुसने लगी अपनी पीट उसकी तरफ करके, तभी यूयेसेस शातिर ने “संभाल कर आइए” कहकर मेरी गांद को अपने दोनो हाथो से सहारा देने लगा.
उसने तब तक हाथ नही हटाया जब तक मैं बैटी नही. पर अब मैं छोड़ने नही वाली थी.
मैं: “आपके खेत में फसल लगी है, इसका मतलब यह नही की आप लोगो के खेत मे आवारगार्दी करोगे.” (आपकी पत्नी प्रेग्नेंट है, इसका मतलब यह नही की आप लोगो की पत्नियो पर चान्स मरोगे)
यह कहकर मैने एक स्माइल डेडी, ताकि वो शर्मिंदा ना महसूस करे. तो वो भी एक स्माइल के साथ अपने तर्की स्वर में बोलने लगा.
रंजीत: “अरे आप तो मेरी भाभी हो, और मैं आपका छोटा ड्यूवर… आपका खेत भी तो मेरा खेत है.”
मैं फिर कामुक होती जा रही थी, पर मैने मॅन बना लिया था के इस्पे फुल-स्टॉप लगाना ही होगा. इसलिए मैने ज़बरदस्ती उसका हाथ हटाया और दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गयी.
मैं: “बड़े डीट आदमी हो यार. चलो अब सीट पे, बाकी सब बाड़मे.”
रंजीत: “डीट नही हू, पागल हू आपके प्यार में. आप जाइए, मैं ज़रा हाथ-गाड़ी (मास्टरबेशन) चलकर आता हू.”